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लेखनी कविता -03-Dec-2021

शीर्षक प्रेम 

बिधा कविता 
प्रेम रूपी इस नदी में 
           कितना शीतल जल है 
प्रेम में ही मुस्कुराता
                 आज और कल है 
प्रेम की बंसी बजी हर
                 गली बृजधाम की 
प्रेम में राधा नाची बाहें
               पकड घनश्याम की
प्रेम मेंमहलों की रानी 
             बन गई मीरा दीवानी 
प्रेम में ही प्रश्न पलते 
                    प्रेम में ही हल है 
प्रेम में ही मुस्कुराता 
                 आज और कल है 
प्रेम में टकरा के लहरें हैं
                हैं किनारे चूर होती
प्रेम में एक आह सुन 
           माँ शिशू को लेके रोती 
प्रेम दीपक प्रेम बाती 
                   प्रेम है आराधना 
प्रेम कोई साधन नहीं है 
                प्रेम केवल साधना 
प्रेम नामुमकिन नहीं है
              प्रेम करना कठिन है
प्रेम सुबहा प्रेम संध्या 
                  प्रेम तो हर पल है 
प्रेम में ही मुस्कुराता
                  आज और कल है 
उदयबीर सिंह गौर
 खमहौरा
 बांदा 
उत्तर प्रदेश 


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10 Comments

Zeba Islam

03-Dec-2021 08:32 PM

Very nice

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उदय बीर सिंह

04-Dec-2021 08:37 AM

Thankyou so much

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Zakirhusain Abbas Chougule

03-Dec-2021 07:59 PM

Nice

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उदय बीर सिंह

04-Dec-2021 08:37 AM

Thankyou

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Swati chourasia

03-Dec-2021 07:40 PM

Very beautiful 👌

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उदय बीर सिंह

04-Dec-2021 08:38 AM

Thankyou so much mem

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